ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
खंजर
जेब से खंजर निकालते वक्त
कुछ याद आया,
वो कुछ भूल रहा था,
शायद उसे कुछ याद आया...।
इधर-उधर ढूंढ़ने की कोशिश में
बेताब नज़र आ रहा था,
अपने खंजर से उस रस्सी को
काटने की कोशिश कर रहा है,
जो दो किनारों को जोड़ती है,
इस पार से उस पार जाने के लिए,
खंजर से टपकती हर एक बूँद लहू की,
इशारा बहते दरिया के तरफ़ था,
छाँव में ओढ़ ली चादर राख की,
तो इल्तिजा समंदर ने पूरी की,
अपनी आगोश में समेट ली,
दरिया की हर एक बहती लहर को,
जो चली आशियाँ डुबोने थी,
समंदर की हद को नापने की इल्तिजा,
खो गई किसी गर्त में,
इस कदर की कोशिश
तमाम उम्र करती रही,
उस गहरे गर्त से लौटने की,
खंजर से टपकती बूंदें लहू की,
एक ही लफ्ज में कई बातें कह रही थीं,
उनके इशारे कुछ जाने पहचाने से है,
लेकिन फिर भी मैं समझा नही,
आख़िर सच क्या है ?
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