ई-पुस्तकें >> खामोश नियति खामोश नियतिरोहित वर्मा
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कविता संग्रह
रोशनी
मैंने देखा अंधेरे में एक गहरी रोशनी
जो अजीब लहजे से चमक रही थी,
और एक आदमी हरी बिरंगी रोशनी की
चादर ओढे हुये,
मेरी तरफ बढ़ा जहाँ मैं खड़ा था,
कुछ कहने की कोशिश कर रहा था,
अपनी लड़खड़ाती आवाज़ में,
चारों तरफ घना अंधेरा था,
उसके गले में चमकती हुई,
मोतियों की माला थी,
और मोती मेरे अच्छे कर्म थे,
और वो शख़्श था मेरी आत्मा......
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