ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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''सरदारजी। जरा जल्दी.. और तेज। मैं आपको इनाम दूंगी।''
अंजना बड़े उत्तेजित भाव से, बौखलाई हुई सी बार-बार इन्हीं शब्दों को दुहराती और ज्यों-ज्यों ये शब्द सरदारजी के कानों में गूंजते, वे टैक्सी की चाल तेज कर देते, और क्षण-भर के लिए अंजना के दिल की तेज धड़कन टैक्सी की उस तेज चाल में गुम होकर रह जाती।
उसे अपने घर पहुंचने की बड़ी जल्दी थी। उसकी निगाहें उस पथरीली सड़क पर लगी हुई थीं जिसे टैक्सी बड़ी तीव्र गति से चीरती चली जा रही थी।
अंजना को पूरा विश्वास था कि वह लग्नमंडप में शादी की घड़ी से पहले ही पहुंच जाएगी और यों अपने मामा की इज्जत पर आच नहीं आने देगी।
सरदारजी ने टैक्सी की गति और तेज कर दी जैसे वे बिना बताए ही लड़की की भावनाओं को समझ गए थे और उसकी सफलता का सेहरा अपने सिर लेना चाहते थे। वे सामने लगे आईने में बार-बार झांककर अंजना का चेहरा देख रहे थे, जिसपर रह-रहकर एक रंग आता था और दूसरा जाता था। उसकी इस घबराहट के पीछे न जाने कितनी अभिलाषाएं छिपी थीं!
अकस्मात् टैक्सी में जैसे भूचाल आ गया। वह सड़क के बीचो-बीच बुरी तरह उछलने लगी। सरदारजी ने बड़ी मुश्किल से चाल धीमी की, लेकिन इससे पहले कि अंजना इस गड़बड़ी के बारे में उनसे कुछ पूछती, टैक्सी सड़क से उतरकर एक पेड़ से टकराकर रुक गई।
एक जोरदार झटका खाकर जब अंजना संभली तो टैक्सी ड्राइवर की बात ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। टैक्सी का पहिया बिलकुल बैठ गया था और इंजन से भाप निकल-निकलकर इधर-उधर बिखर रही थी।
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