ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
'लो, आज से उसका नाम अपनी डायरी में से निकाल दो।'' शबनम ने गिलास में दूसरा पेग बनाकर बनवारी को देते हुए कहा।
''नहीं शिब्बू! उसका मेरी जिन्दगी में से निकल जाना इतना आसान नहीं है।''
''बस इसी एक बात की तुममें कमी है बनवारी। तुम कभी अपनी हार नहीं मानते। पैसा, पैसा! हर वक्त पैसे की धुन। वह बेचारी मुहब्बत का सहारा लेने आई थी और तुमने उसे ठुकरा दिया। एक दिन तुम भी पछताओगे जब तुम्हारी जवानी दगा दे जाएगी। समझे! और तब-तब सच्चा प्यार ही तुम्हारा साथ देगा।''
''शिब्बू!'' वह जोर से चिल्ला उठा और उसने शराब का भरा गिलास दीवार पर दे मारा। शीशा चूर-चूर हो गया, ठीक उसी तरह जिस तरह आज बनवारी के इरादे चूर-चूर हो गए थे।
इस धमाके के बाद कमरे में फिर सन्नाटा छा गया, लेकिन इस सन्नाटे ने बनवारी के मन-मस्तिष्क में एक उत्तेजना भर दी।
बनवारी सत्य से सामना न कर सका। शबनम चुपचाप अंधेरे में खिसककर एक कोने में जा दुबकी और वह खिड़की के पास खड़ा दूर फैक्टरी की उस चिमनी की ओर देखता रहा जिसमें से काला-काला धुआं निकलकर स्वच्छ आकाश को गंदला कर रहा था।
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