ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''कितनी देर लगेगी-सरदारजी?''
''कम से कम आध घंटा।''
''आपने तो मेरा सब कुछ खत्म कर दिया।''
''वाह गुरु की मर्ज़ी बीबी! तेरी बात विच आके तो मैंने अपनी टैक्सी का सत्यानास कर लिया।''
अंजना ने और अधिक बात बढ़ाना उचित नहीं समझा और चुपचाप सड़क के किनारे वाली पुलिया पर बैठ गई। सरदारजी पहिया बदलने लगे और वह वहीं बैठी सड़क की वीरानी निहारती रही। उसकी ज़िंदगी में अचानक एक तूफान आ गया था। होनी जो भी रंग लाने वाली थी उसकी जिम्मेदार वह खुद थी। आज अगर उसने अपने मामा की बात मानकर अपने झूठे प्यार को न्योछावर कर दिया होता तो उसे इस अग्नि-परीक्षा में से न गुजरना पड़ता। परिस्थितियों ने एक अनोखा मोड़ ले लिया था। उसकी जरा-सी नासमझी ने उसकी ज़िंदगी को एक विचित्र मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया था।
अब केवल एक हल्की-सी आशा रह गई थी। वह थी संभावना मात्र कि शायद उसका जीवन नष्ट होने से बच जाए। इसके लिए वह मन ही मन भगवान से विनती कर रही थी और उसे पूरा विश्वास था कि भगवान उसकी भूल चूक का इतना कठोर दंड नहीं देगा, लेकिन-? लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसके भाग्य और साहस दोनों ने अंतिम समय पर उसे धोखा दे दिया। उसकी आशाओं पर दुर्भाग्य की छाया पड़ गई।
वह जब अपने घर पहुंची तो शादी की रोशनियां बुझ चुकी थीं। लग्नमंडप की बुनियाद उखड़ गई थीं। हवनकुंड की राख अपने आंचल में अंगारे छिपाए हुए थी जिसने उसके जीवन के सुख को सदा के लिए सुलगाके रख दिया था। उसका उखड़ा हुआ सांस वहीं रुक गया और वह एक हारे हुए खिलाड़ी की तरह उस मंडप को निहारने लगी जहां से उसका दूल्हा वापस चला गया था। उसने अपनी बरबादी पर चीखना चाहा, लेकिन उसका गला रुंध चुका था।
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