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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


घर के सन्नाटे और चारों ओर छाए अंधेरे ने वातावरण को भयानक बना रखा था। वह हवेली, जो गंगापुर की सबसे ऊंची हवेली थी और जिसपर उसके पुरखों की इज्जत के झंडे गड़े हुए थे, आज उसकी दीवारें गिरती दिखाई दे रही थीं।

अंधेरे में टटोलती हुई वह उस जीने की ओर बढ़ी जो पिछवाड़े से उसके कमरे तक जाता था। उसने पांव से जूती उतारकर एक ओर फेंक दी और दबे पांव अपने कमरे की ओर बढ़ी।

उसके कमरे में भी लगभग अंधेरा था। केवल आतिशदान की आग की हल्की-सी रोशनी थी। धीरे से किवाड़ सरकाकर वह अंदर आ गई और फिर दरवाजा भेड़कर पलटी ही थी कि उसके रुंधे हुए गले से हल्की-सी चीख निकल गई।

सामने पुरखों की पुरानी कुर्सी पर उसका मामा बैठा था। उसकी आंखों में आज प्यार की जगह खून उतरा हुआ था और आंखें जैसे पथरा के रह गई थीं। इससे पहले कि उसका मामा अपनी भांजी पर गरजकर बरस पड़ता, अंजना उसके पांव पर गिर पड़ी और रो-रोकर गिड़गिड़ाने लगी- ''मुझे माफ कर दो मामा! मुझे माफ कर दो। मेरी मामूली-सी गलती की तुम्हें इतनी बड़ी सजा मिलेगी, यह मुझे मालूम नहीं था। तुम मेरा गला घोट दो मामा, मेरा गला घोंट दो। अपनी बहन की निशानी अपने हाथों मिटा दो। जलाकर राख कर दो उसे जिसने तुम्हें इस बुढ़ापे में ऐसा दुख पहुंचाया है।''

वह फूट-फूटकर रोने लगी लेकिन फिर अचानक ही उसकी आवाज रुक गई। गला सूख गया और वह आंखें फाड़कर मामा की लाल-लाल आंखों में झांकने लगी। वह क्रोधित आंखें अब भी पथराई हुई थीं-वह तो सदा के लिए पथरा चुकी थीं। उसकी जबान हमेशा केँ लिए तालू से चिपक गई थी और उसके पीले मुर्दा होंठों पर मानो अभी तक एक आवाज तरंगित थी-'अंजू! मैं तुझे कभी क्षमा नहीं करूंगा।'
`
अंजना के मुंह से एक हृदय-विदारक चीख निकल गई। उसकी चीख सुनकर सारा घर दहल उठा। विवाह के अवसर पर आए हुए सारे रिश्तेदार चौंक पड़े। एक-एक करके सभी अंधेरे कमरों में उजाला हो गया। एक शोर-सा कानों में सनसनाने लगा। हर कोई तेजी से ऊपर चढता आ रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे हवा के झोंकों ने यह खबर हर किसीके कान में डाल दी थी कि लाला राजकिशन यह दुनिया छोड़ चुके हैं।

अंजना भयभीत हो गई जैसे वही अपने मामा की हत्यारी हो। और वह कदम जो सीढ़ियों पर तेजी से बढ़ते आ रहे थे, उसे रौंदने को आतुर हो रहे हों। उन लोगों का सामना करने का उसमें साहस नहीं रहा। उसने झपटकर पिछले दरवाजे का किवाड़ खोला और उन्हीं अंघेरों में खो गई जिनका सहारा लेकर वह अपने कमरे तक आई थी।

एक धड़ाके के साथ किवाड़ अन्दर की ओर खुले और घर आए मेहमान और नातेदार तेजी से लाला राजकिशन की ओर बढ़े। उन्हें मुर्दा पाकर उनका रोना-चिल्लाना शुरू हो गया। घर में एक कुहराम मच गया।

अंजना को लगा जैसे उसकी दुनिया में सदा के लिए अंधेरा छा गया है। वह अचानक फिसलकर एक ऐसी गहरी खाई में जा गिरी थी जिसकी गहराइयों का अनुमान लगाना कठिन था।

अपनी सिसकियों को साड़ी के आंचल से रोके वह उन्हीं अंधेरों में छिपी रही। उसमें किसीके भी सामने आने का साहस नहीं था। उन लोगों की वह बातें भी सुन रही थी जिनमें केवल उसकी भर्त्सना की जा रही थी, उसे कोसा जा रहा था। मामा की मौत का और उस घराने के नाम को हमेशा के लिए डुबो देने का उसीको जिम्मेदार ठहराया जा रहा था।

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