लोगों की राय
ई-पुस्तकें >>
कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
|
पुस्तक क्रमांक : 9582
|
आईएसबीएन :9781613015551 |
 |
|
7 पाठकों को प्रिय
38 पाठक हैं
|
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
8
अंजना ज्योंही उपवन में से अन्दर आई, सामने जगन्नाथ कुर्सी पर विराजमान मिले। उसे देखते ही बोले-''बहू! अभी तक तुम तैयार नहीं हुईं!''
''मैंने तो वहां जाने से इंकार कर दिया था, बाबूजी!''
''लेकिन मैंने कमल से वादा किया था कि बहू जरूर जाएगी। तुम तो जानती हो, मेरा या तुम्हारी मां का वहां जाना अच्छा नहीं लगता।''
''लोग क्या सोचेंगे?''
''कुछ भी नहीं। हममें से किसी न किसीको जरूर वहां जाना चाहिए। कमल मेरे बेटे के समान है। हममें से कोई नहीं गया तो बुरा मान जाएगा।''
अंजना ससुर से बहस नहीं कर सकी और विवशतावश उसे कमल के यहां जाने के लिए तैयार होना पड़ा। उधर बाबूजी ने माली से ताकीद कर दी कि वह किश्ती झील में डाल दे और इधर बहू से जल्दी करने के लिए कहा। रमिया राजीव को बहलाने के लिए सामने के पार्क में चली गई थी।
आज कमल का जन्मदिन था। उसने अपने जन्मदिन की पार्टी का प्रबन्ध रेनबो क्लब में किया था। वह चाहता तो मेहमानों को लाला जगन्नाथ के घर भी निमंत्रित कर सकता था, लेकिन जमाने के दस्तूर के ख्याल से वह उस सोकवार घर में खुशी का कोई उत्सव नहीं करना चाहता था।
...Prev | Next...
मैं उपरोक्त पुस्तक खरीदना चाहता हूँ। भुगतान के लिए मुझे बैंक विवरण भेजें। मेरा डाक का पूर्ण पता निम्न है -
A PHP Error was encountered
Severity: Notice
Message: Undefined index: mxx
Filename: partials/footer.php
Line Number: 7
hellothai