ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
सारे मेहमान आ चुके थे। चारों ओर चहल-पहल, हंसी-खुशी फैल रही थी। रंगारंग कपडों से सारा वातावरण झिलमिला रहा था। नाच-गाने की महफिल जमी हुई थी। हर आदमी केक काटे जाने की रस्म का बड़ी बेताबी से इंतज़ार कर रहा था, लेकिन कमल की निगाहें मेहमानों की इस भीड़ में पूनम को ढूंढ रही थीं। उसे विश्वास था कि वह अवश्य आएगी।
सहसा उसके एक साथी ने उससे ठिठोली करते हुए कहा-''इजाजत हो, तो आपको पैदा किया जाए।''
इस वाक्य पर लोगों की हंसी छूट गई, लेकिन कमल ने हाथ जोड़कर विनयपूर्वक कहा-''थोड़ी देर और-अभी दो-चार मेहमान बाकी हैं।''
''उन दो-चार के लिए हमें क्यों इस जाड़े में ठिठुराया जा रहा है?''
एक दूसरा साथी बोल पड़ा-''चलो माफ किया। क्या जाने उन दो-चार मेहमानों में कोई बड़ा महत्त्वपूर्ण मेहमान हो!''
यह सुनकर कमल कुछ झेंप गया मानो कहने वाले ने उसके दिल की छिपी सच्ची बात को खोल दिया हो। वह उनसे निगाह बचाकर जैसे ही दूसरी ओर मुड़ा कि सामने क्लब के डेक पर पूनम खड़ी थी। वह उसकी ओर बेझिझक निगाहों से देखने लगा।
पूनम अभी-अभी किश्ती छोड़कर किनारे पर उतरी थी। श्वेत रेशमी साड़ी, बिना मेकअप के चेहरा, कानों में झिलमिलाती हल्की बालियां जो गले की जंजीर से बड़ी मनोहर समानता रखती थीं, सादगी की एक अनोखी तस्वीर, संगमरमर की एक प्रतिमा-ऐसा मालूम होता था जैसे खूब सजेधजे तारागण जैसे अतिथियों की ओट से पूर्णिमा का चांद उभरकर सामने आ गया हो। हर किसीकी निगाहें सादगी की इस प्रतिमा पर केन्द्रित थीं जो आंखों में संचित घबराहट लिए आगे बढ़ रही थी और जिसे आज से पहले उन्होंने कभी नहीं देखा था।
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