ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''सिंगार करना और बात है बहू! यह तो निशानी है उसकी।''
अब अंजना कुछ न कह सकी और विवश होकर जजीर को गले में पहन लिया। वह अपने-आपको शेखर के लगाव से जितना भी दूर ले जाने का प्रयास करती थी, उतना ही वह उसका पीछा करता था और पास आता जा रहा था। कभी-कभी तो वह सचमुच अपने-आपको शेखर की बेवा समझने लग जाती थी। अनदेखे और कल्पित पति की विधवा! बिना जने बच्चे की मां! और फिर वह एक विधवा के कर्तव्य और जिम्मेदारियों को निभाने लगती।
मां ने उसके गले में पड़े लाकेट की ओर भरपूर नजरों से देखा तो उसके बेचैन दिल को जैसे अचानक चैन आ गया। फिर वह जाते-जाते सहसा रुककर बोली-''लो, जिस काम से आई थी वह तो भूल ही गई!''
''क्या मां?''
''तुम्हारे ससुरजी का हुक्म हुआ है कि वे आज फिर सूप पिएंगे तेरे हाथ का बना हुआ। दो-चार दिन तूने उनकी आवभगत क्या की कि अब हर रोज फर्माइशें होने लगीं।''
''तो क्या हुआ मांजी? मेरा तो सौभाग्य है कि वे मेरे हाथ की बनी चीजें पसन्द करते हैं।''
''पसन्द ही नहीं करते बल्कि चटखारे ले-लेकर मुझे ताने देते हैं कि जिन्दगी-भर मैंने कुछ नहीं सीखा। अब तू उनके लिए जल्दी से सूप बना ला, वरना मेरी जान को आफत में डाल देंगे।''
मां की बात सुनकर अंजना के दिल में गुदगुदी-सी हुई और वह रसोईघर की ओर चली गई।
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