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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना अधिक देर वहां नहीं रुक सकी। वह धीरे-धीरे उन सीढ़ियों पर चढ़ गई जो उसके कमरें तक जाती थीं। कमल के शब्द दूर तक उसके कानों में गूंजते रहे। उसने कमरे में आते ही उन आवाज़ों पर किवाड़ बन्द कर दिए जो नीचे से आ रही थीं।

जरा-सी देर में फिर सन्नाटा छा गया। शेखर का कमरा उसकी ज़िंदगी का आईना बना हुआ था। चारों ओर मौत की सी खामोशी छाई थी। वह वातावरण, जो सदा उसे शांति प्रदान करता था, उसे मानसिक बल देता था, आज उसके दिल की धड़कनों से खेलने लगा। बार-बार उसके मन में एक ही सवाल उठता था- "कहीं कमल की यह हमदर्दी उसके दिल की बेचैनियों का कारण न बन जाए?'

ज्यों-ज्यों वह ऐसा सोचती, उसके दिमाग की नसें फटने-सी लगतीं। अंग-अंग में एक विचित्र-सी कंपन का आभास होने लगा। उसके हाथ-पांव बर्फ जैसे ठंडे पड़ने लगे। उसने तेजी से बढ़कर उस रेडियोग्राम का सहारा लिया जिस पर शेखर की तस्वीर रखी थी। लेकिन वह शेखर की निगाहों का सामना न कर सकी। उसे लगा जैसे वह उसे सचमुच पूनम समझकर घृणा से देख रहा है। वह उसकी आराधना पर शंकित हो उठा है। वह उन निगाहों की ताब न ला सकी। उसने झट से उस तस्वीर को उलट दिया और वहां से हटकर उसने अपनी अलमारी के पट खोले।

वह अपना जोड़ा बदलने के लिए कपड़े उलटने-पलटने ही लगी थी कि पूनम और शेखर के ब्याह का फोटो निकल आया। उसने उसे निकालकर भर नजर देखा। उसमें भी शेखर की नजरें उस पर संदेह कर रही थीं। न जाने किस उलझन की लपेट में आकर उसने उस तस्वीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। वह शायद पूनम के कल्पित अस्तित्व को भीँ मिटा देना चाहती थी।

जब उसने तस्वीर के उन टुकड़ों को अपनी मुट्ठी में बंद किया तो पूनम के शब्द फिर उसके कानों में गूंजने लगे। वह फिर अपना वचन दुहराने लगी। उसी ने जीवन को नया रूप दिया था। वह उसे उसकी जिम्मेदारियां समझाने लगी। वह शेखर की विधवा है। अंजना मर चुकी है। अब वह उसके बच्चे की मां है।

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