ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना देर तक बहीं खड़ी उसे देखती रही। उसकी बातों में आज कितनी मिठास थी! जब कभी कमल उसके पास आता तो न जाने क्यों उसे आभास होने लगता जैसे उसकी ज़िंदगी की कोई कमी पूरी हो गई हो और जब वह चला जाता तो फिर से वही कमी उभर आती और वह उदास हो जाती।
'रोचक' शब्द बार-बार उसके कानों से टकराने लगा। एक क्षण के लिए उसके दिल में एक गुदगुदाहट-सी हुई और दूसरे ही क्षण वह यथार्थ के साक्षात्कार से कांप उठी। वह एक विधवा है। एक बच्चे की मां है। उसके लिए किसी पर पुरुष में तनिक दिलचस्पी लेना भी पाप है। फिर उसकी नजरें उस हरी-भरी घास पर दौड़ गईं जहां राजीव घर के माली से खेल रहा था। वह अन्दर जाने के लिए मुड़ी।
ज्योंही उसने पिछवाड़े के दरवाजे से निकलकर जीने पर कदम रखा, उसे बाबूजी की आवाज सुनाई दी। वे कमल से कह रहे थे-''बहू का कदम घर में क्या पड़ा कि तुमने भी हफ्ते में दो बार सूरत दिखानी शुरू कर दी, वरना हफ्तों सरकार को फुरसत ही नहीं मिलती थी।''
''नहीं चाचाजी!''
''अरे सच कहते डरता क्यों है?'' शांति बड़बड़ाई-''घर में कोई बातचीत करने वाला हो, कोई पूछने वाला हो, तो कोई आए। आपके पास आकर क्या करे! अखबार की रोजाना की खबरों के सिवा आपके पास है ही क्या!''
बाबूजी बीवी के पक्ष लेने पर हंस दिए। कमल ने भी इस अवसर का फायदा उठाया और शांति की बात की हामी भर दी। कहने लगा-''सच चाजाजी! बहू के आ जाने से घर में रौनक आ गई है। आपको ऐसा महसूस नहीं होता क्या? राजीव की चहचहाहट ने इस सूने घर के सूने और दुखी जीवन को सुखद बना दिया है।''
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