ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
इतने में दरवाजे पर किसी आहट ने आकर उसकी मानसिक उथल-पुथल को समाप्त कर दिया। उसने जल्दी से मुटठी में लिए हुए तस्वीर के उन टुकड़ों को पास रखी एक डिबिया में बन्द कर दिया। फिर पलटकर जो देखा तो शांति उसके सामने खड़ी थी।
''आइए मांजी!''
''यहां अकेली बैठी क्या कर रही हो?''
''कुछ नहीं मांजी! हां, सोच रही थी, यह सब जेवरात आपके हवाले कर दूं। कोई इधर-उधर न हो जाए।'' अंजना ने तुरंत बात पलट दी।
उसकी इस बात पर मां मुस्कराती हुई बोली-''जब तू इन्हें सुरक्षित नहीं रख सकती तो भला मैं क्या रखूंगी? फिर यह तुम्हारी चीज है, तुम्हीं इसे संभालो।''
''लेकिन मैं..."
''जानती हूं। लेकिन यही औरत की पूंजी होती है। जो भगवान बुरा वक्त न लाए, सहारा बनती है।'' मां ने जेवरों की ओर देखते हुए कहा।
सहसा उसकी नजरें एक हार पर जा रुकीं। सोने की इस पतली और सुन्दर-सी जंजीर में एक लाकेट लगा हुआ था। उसकी उंगलियों ने उसे टटोला और फिर वह लाकेट खोल दिया।
अंजना ने जैसे ही उसमें जड़ी शेखर की तस्वीर देखी, उसे एक धक्का-सा लगा। वह सांस रोककर एक नजर से उसे और दूसरी नजर से मां को देखने लगी। मां बेटे की भोली सूरत को एकटक देखती जा रही थी। उसकी आंखों में आंसू उतर आए थे, लेकिन उसने उन्हें बहने नहीं दिया।
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