ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
ढलती शाम दूर तक किसी मानव का पता नहीं, अकेली औरत और उसपर बैग में नकदी और जेवरात! ड्राइवर के दिमाग में बार-बार ये बातें चक्कर लगाने लगीं; उसकी सभ्यता को कुंठित करने लगी। यह मेहनत के ठीकरों से उस दौलत को अच्छा समझने लगा। अंजना के बैग में रखे हुए जेवरात उसकी नीयत को डांवाडोल करने लगे।
सहसा उसने टैक्सी को बड़ी सड़क से उतारकर एक कच्ची सड़क पर डाल दिया। यह रास्ता जंगल के किसी रास्ते से जाकर मिलता था। सड़क बदलते ही गाड़ी उछली और अंजना ने चकित नजरों से उस रास्ते की ओर देखा जो क्षण-प्रतिक्षण घने जंगल में बदलता जा रहा था। यह दृश्य पहले तो उसे अनोखा मालूम हुआ, और फिर भय पैदा करने लगा। उसके दिल की धड़कन तेज हो गई। न जानते हुए भी उसे ऐसा आभास हुआ जैसे वह किसी गलत रास्ते पर ले जाई जा रही है, या किसीने अकस्मात उसका जीवन पथ बदल दिया है।
''ड्राइवर! कहां जा रहे हो?'' उसने बेचैन होकर पूछा।
''नैनीताल बीबीजी!''
''वहां तो वह खुली सड़क जाती है।''
''यह रास्ता भी वहीं निकलता है। छोटा है, जल्दी पहुंचा देगा।''
''लेकिन...''
''घबराइए नहीं बीबीजी! कच्चा रास्ता है लेकिन अब दूरी कम हो गई है। अंधेरा होने से पहले ही हम पहुंच जाएंगे।''
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