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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''किसी ऐसे साथी को साथ ले लो-जो स्वयं खो गया हो।'' अंजना ने पलटकर कमल की ओर देखा और कुछ क्षणों तक चुपचाप देखती रही। आज कमल की आंखों में एक अनोखी चमक थी। एक नया अन्दाज उमड़ आया था उनमें-जो आज से पहले अंजना ने कभी नहीं देखा था।

''खड़ी क्या सोच रही हो? उस मुसाफिर का हाथ नहीं थामोगी जिस तुमने एक दिन अपने द्वार पर दूल्हा के रूप में बुलवाया था?''

''कमल!'' वह थरथराती आवाज में पुकार उठी।

''हां अंजू, मैं सब जान गया हूं। जिन बंधनों को भगवान न तोड़ सका हम इंसान उन्हें कैसे तोड़ सकते है?''

''लेकिन यह सब कुछ तुमसे कहा किसने?''

''तुम्हारी इन खामोश निगाहों ने-तुम्हारी इस परीक्षा ने। उस आराधना ने जो मिलन की घड़ियों के लिए पल-पल तरसती रही।''

''वह एक स्वप्न था, जो मैंने देखा था।''

''आज मैं उसी का स्वप्नफल बनकर आया हूं। आओ, अंजू! मेरे करीब आओ और अपनी दुखदायी यादों को मेरी छाती में इस तरह दफन कर दो कि वे फिर कभी सिर न उठा सकें-'' और यह कहते-कहते वह बिल्कुल निकट चला गया।

अंजना, जो एक भटके हुए राही की तरह खड़ी थी, उसकी बात सुनकर पिघल गई। उसकी आंखों में छिपे हुए आंसू सितारों की तरह झिलमिला उठे। वह बड़ी बेबाकी से उसकी ओर बढ़ी और किसी अज्ञात प्रेरणा के वशीभूत उसने अपने-आपको उसकी बांहों में गिरा दिया और अपना चेहरा उसकी छाती से लगाकर बच्चों की तरह फफक-फफककर रोने लगी।

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