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ई-पुस्तकें >> कटी पतंग

कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


दूर शिव मन्दिर की घंटियां नैनीताल की पहाड़ियों में गूंज रही थीं। वह लहराती हुई गूंज हवा के झोंकों के साथ आ-आकर उनके कानों से टकराने लगी। कमल ने उसके बालों को उंगलियों से सहलाते हुए पूछा-''आज मन्दिर नहीं चलोगी-अंजू?''

''नहीं, आज मैं कहीं नहीं जाऊंगी।''

''क्यों?''

''मेरा देवता अपना सिंहासन छोड़कर स्वयं मेरे मन-मन्दिर में आ बसा है। अब मैं क्या करूंगी वहां जाकर!''

कमल ने कसकर उसे अपने साथ लगा लिया और फिर उसे सहारा देकर जीप गाड़ी की ओर बढ़ चला।

वादी में अभी तक मन्दिर की घंटियां गूंज रही थीं।

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