ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
राकेश की बात उसकी समझ में आ गई। उसने नुस्खा लौटा दिया और उससे 'आज्ञा चाहता हूं' कहकर अपनी मुहीम पर निकल खड़ा हुआ।
वहां से सीधा वह डाक्टर काशीनाथ के यहां पहुंचा जो शहर की भीड़ भरी पुरानी आबादी में रहता था। छोटी-छोटी गलियां पार करता हुआ वह उसके मकान तक जा पहुंचा। ढलान से ऊपर जाते ही गली के नुक्कड़ में उसका दवाखाना था। वह उसके बाहर रुक गया और ध्यान से उस तख्ती को पढ़ने लगा जिसपर डाक्टर का नाम लिखा हुआ था। उसने शाम के अंधेरे में उस जीने की ओर देखा जो मकान की पहली मंजिल की ओर जाता था। डाक्टर काशीनाथ का दवाखाना उसी मंजिल पर था। वह वहां गली के नुक्कड़ में खड़ा मन ही मन कोई बहाना सोचने लगा, जिसके आधार पर वह मशवरे के लिए ऊपर जा सके।
सहसा गली की ढलान पर एक स्ट्रीट लैम्प के सहारे बनवारी को खड़ा देखकर वह चौंक पड़ा और फिर जल्दी से उसने अपने-आप को अंधेरे में छिपा लिया। बनवारी बेचैनी से किसीकी प्रतीक्षा कर रहा था और उसी बेचैनी में सिगरेट पर सिगरेट फूंके जा रहा था और बार-बार उसी ओर देख रहा था जिधर कमल खड़ा था।
एकाएक बनवारी दवाखाने के जीने की ओर देखकर ठिठक गया। उसने होंठों में दबाए हुए सिगरेट को पास की नाली में फेंक दिया और अपनी बेचैनियों को समेटे उस जीने तक चला आया-जिससे शबनम नीचे आ रही थी। कमल और भी सिमटकर खड़ा हो गया और उन दोनों की तरफ गहरी नजरों से देखने लगा जो किसी अज्ञात कारण से परेशान नजर आ रहे थे।
''क्यों, क्या हुआ?'' बनवारी ने निकट आते ही पूछा।
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