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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''वह वहां क्या कर रहा था?'' अब केदार बाबू ने प्रश्न किया।

''जी-जी-वह मेरे लिए धानी चुनरिया लेकर आया था-बस।''

''ओ:, तो तुम लोगों की पुरानी पहचान है!''

''नहीं बाबूजी! वह तो बीबीजी के दर्शनों को आता था।''

''बकवास बन्द करो-सच-सच बताओ, यह दवा उस दूध में किसने मिलाई?'' कमल ने रमिया को चोटी से पकड़ लिया और झंझोड़ते हुए पूछा। वह चिल्लाने लगी कि उसे इस बारे में कुछ भी मालूम नहीं। और फिर वह कसमें खाने लगी। कमल ने निराश होकर उसे छोड़ दिया और वह राजीव को लेकर बाहर चली गई।

''इसमें जरूर बनवारी का हाथ है कमल!'' केदार बाबू ने कहा।

''हां बेटे, अगर वह निर्दोष बच सकती है तो मैं तुम्हारा यह उपकार कभी नहीं भूलूंगी।'' शान्तिदेवी ने गिड़गिड़ाकर कहा।

कमल ने, जो अभी तक किसी गहरी सोच में डूबा हुआ था, उनकी ओर मौन नजरों से देखा। फिर उसने सावधानी से वह शीशी अपने कोट की जेब में रख ली और बाहर निकल गया। केदारनाथ और शान्तिदेवी उसे देखते ही रह गए।

कमल वहां से सीधा राकेश की दुकान पर पहुंचा। वह काउंटर पर खड़ा किसी ग्राहक को दवाइयां दे रहा था। कमल ने उसे हैलो कहा और दूसरे कोने में जा खड़ा हुआ। राकेश ग्राहक से निबटते ही कमल के पास आ गया और मुस्कराकर बोला-''आज कैसे रास्ता भूल पड़े?''

''एक दवा की जरूरत थी।'' उसने वह शीशी जेब से निकाल-कर उसके सामने रख दी।

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