ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''रसोईघर के बाहर।''
''कौन लाया था इसे? इसमें क्या था?''
''मैं क्या जानूं बाबूजी!''
''रमिया! जब छोटी मालकिन रसोईघर से दूध लेकर निकली थीं तो यह शीशी कहां थी?''
''मुझे नहीं मालूम बाबूजी! लेकिन दूध तो मैं लाई थी रसोईघर से।''
''तो बाबूजी को दूध किसने दिया था?''
''बीबीजी ने।''
''तो इसका मतलब यह हुआ कि जब तुम रसोईघर से दूध लेकर गईं तो दूध ले जाने से पहले तुमने इस शीशी का जहर दूध में मिला दिया।''
''नहीं बाबूजी, नहीं। मैंने तो इसे देखा तक नहीं। राम कसम, मैंने ऐसा नहीं किया।'' उसने बौखलाकर कहा।''
''दूसरा कौन था तुम्हारे पास?''
''बनवारी।'' वह उसी बौखलाहट में कह गई।
कमल ने उसकी कांपती हुई आवाज को महसूस किया और बनवारी का नाम सुनते ही चुप हो गया। उसके पिताजी और शान्तिदेवी भी उसके निकट चले आए।
|