ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
कमल पत्र को पुन: पढ़ने लगा और केदार बाबू उसे विश्वास दिलाने लगे कि वह लड़की कल की भूल संवारने के लिए आज का पाप नहीं कर सकती। शान्तिदेवी ने भी उनकी हां में हां मिलाई और कहा कि इस पत्र के आधार पर उस बेचारी की सहायता की जाए। उसे बनवारी और उस औरत के चंगुल से छुटकारा मिलना ही चाहिए-और फिर अगर यह सिद्ध न हो सका कि उनकी बहू मर चुकी है तो वह औरत इस घराने की सारी जायदाद की मालिक बन बैठेगी।
कमल की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। उसने पत्र को मुट्ठी में भींच लिया और एक ओर पड़ी हुई कुरसी पर बैठ गया। अंजना के कहे हुए शब्द बार-बार उसके कानों से टकराने लगे-'बाबूजी को जहर मैंने नहीं दिया-यह कलंक जो मुझपर लगा है, इसे किसी तरह मिटा दो-इसे किसी तरह मिटा दो-!'
अचानक राजीव ने उसके इन विचारों का क्रम भंग कर दिया। वह भागता हुआ भीतर आया और सीधा उसकी गोद में जा छिपा। शायद रमिया और वह आंखमिचौली खेल रहे थे। रमिया भी भागी-भागी भीतर आई और फिर ठिठककर बोली-''बाबूजी-बाबूजी-इसके हाथों से ले लीजिए।''
''क्या?''
''वह-कांच की शीशी-मुंह में लग जाएगी।''
कमल ने राजीव को प्यार से अपने वश में किया और उसके हाथों से वह शीशी ले ली जिससे वह खेल रहा था। यह वही शीशी थी जो बनवारी ने गोलियां दूध में डालने के बाद खिड़की से बाहर फेंक दी थी। उसे हाथ में लेकर कमल को कुछ संदेह हुआ और वह गौर से उसपर लगे लेबिल को पढ़ने लगा। फिर तिरछी नजरों से रमिया की ओर देखकर बोला- ''यह तुम्हें कहां से मिली?''
|