ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''मुलाकात हुई क्या?'' केदार बाबू ने अचानक प्रश्न कर दिया।
कमल ने सिर उठाकर पहले उनकी ओर देखा और फिर हामी भरते हुए सिर हिला दिया।
''क्या कहती थी?''
''बस एक ही रट लगा रही थी कि मैंने यह पाप नहीं किया। मेरे माथे पर से यह कलंक मिटा दो।''
''तुमने कुछ सोचा इस बारे में?''
''नहीं...और सोचा भी क्या जा सकता है! सारे सबूत उसके खिलाफ जाते हैं। सचाई को उसने स्वयं झूठ के पर्दे में छिपाकर अपने-आपको अपराधी सिद्ध कर दिया है।''
''लेकिन हमें उसे बचाना ही होगा। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं वह ऐसा नहीं कर सकती। वह निर्दोष है।''
''यह अचानक आपको उससे हमदर्दी क्यों होने लगी!'' कमल ने आश्चर्य से पूछा।
''इसलिए कि वह हमारे घराने की इज्जत है।''
पिता की यह बात सुनकर पुत्र ने और भी आश्चर्य से उनकी ओर देखा। वे पुन: बोले-''यह भूल जाओ कि उसने क्या किया। यह सोचो कि उसने क्या नहीं किया तुम्हें पाने के लिए!''
''यह आप क्या कह रहे हैं?''
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