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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''अंजना!'' कमल ने लोहे की सलाखों का सहारा छोड़ दिया और उसकी बरसती आंखों में घृणा से झांककर बोला, ''कभी औरत की आंख से टपका हुआ एक आंसू ताजमहल बन जाता है और कभी दरिया भी बह जाएं तो कुछ असर नहीं होता।''

कमल ने बेरुखी से अपना कंधा झटका और मुंह मोड़कर जाने लगा। तभी अंजना ने उसे पुकारा और वह ठिठककर रुक गया।

''क्या अभी कुछ और कहने-सुनने को बाकी है?'' कमल ने क्रोध से पूछा।

''बस एक भीख मांगना चाहती हूं। वचन दो कि निराश नहीं करोगे।''

''क्या कहना है तुम्हें?''

'''बाबूजी को मैंने जहर नहीं दिया। यह कलंक जो मुझपर लगा है, इसे किसी तरह मिटा दो। मैं अभागिन जरूर हूं लेकिन नारी-जाति पर कलंक नहीं हूं।''

कमल ने तिरछी नजरों से उसकी ओर देखा और बिना कोई उत्तर दिए वहां से चल दिया। अंजना एक घायल हिरनी की तरह उन सलाखों से टकराकर रह गई।

कमल जब लालाजी की कोठी पर पहुंचा तो शाम गहरी हो चुकी थी। उसके पिता और शान्तिदेवी दुःख में डूबे उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे। रमिया राजीव को लिए बाहर बरामदे में खड़ी थी-जो बार-बार एक ही रट लगा रहा था- ''मम्मी कहां है?'' कमल को जब मां ने बताया कि राजीव सुबह का भूखा है और उसने दूध पीने से इंकार कर दिया है तो उसके दिल को ठेस लगी। और तो कुछ न सूझा, बस रमिया से राजीव को बागीचे में ले जाने के लिए कह दिया।

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