ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''पाप और पुण्य का फासला तो तुमने उसी दिन खत्म कर दिया था जब तुम उस घराने में बनावटी रूप धरकर दाखिल हुई थीं।''
''वह तो एक वचन था जो मैं निभा रही थी।''
''झूठ और फरेब का सहारा लेकर!'' वह झुंझलाकर बोला।
''हां।''
''क्यों?''
''मैं अपने अतीत को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा डालना चाहती थी।'' यह कहते-कहते उसने मुंह फेरकर डबडबाई आंखों से उसकी ओर देखा। एक बार तो जी में आया कि वह अपने जीवन का रहस्य उसपर प्रकट कर दे, लेकिन कमल की आंखों में घृणा की चिंगारियां देखकर उसमें साहस न हुआ। इसके अतिरिक्त वह यह भी नहीं चाहती थी कि कल जिसकी कल्पना-मात्र से कमल को घोर घृणा थी, आज उसका अस्तित्व देखकर कहीं वह कोई भयानक कदम उठा ले।
वह अभी तक उसे संदिग्ध नजरों से देख रहा था और अब शायद उसके अतीत को जानने के लिए बेचैन हो गया था। वह बनवारी से उसके सम्बन्ध के बारे में जानना चाहता था, लेकिन वह उसके प्रश्नों से डर रही थी। इससे पहले कि वह उस पर घिनौने प्रश्नों की बौछार कर दे वह स्वयं ही बोल उठी- ''कमल! जिस कंवल को पाने के लिए मैं दिन-रात कीचड़ में लथड़ती रही, जब वह मेरे निकट आया तो लहरों के रेले ने उसे फिर मुझसे दूर कर दिया। अब तो दिल के सारे कंवल बुझ गए हैं। सारी आशाएं टूट चुकी हैं। मैं जानती हूं कि मैं तुम्हें हमेशा-हमेशा के लिए खो चुकी हूं-'' यह कहते-कहते उसकी जबान लड़खड़ा गई और उसकी आंखों से पानी बरसने लगा।
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