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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


''नहीं!'' एक चीख जैसी आवाज दीवारों से टकराई और उसकी जबान लड़खड़ाकर रह गई। उसने फटी-फटी आंखों से इंस्पेक्टर तिवारी को एक बार फिर देखा जो अब उसे बड़ी गहरी और संदेहजनक दृष्टि से देख रहा था। वह कांप उठी और रुख बदलकर लालाजी की पथराई आंखों की ओर देखने लगी।

''आपने कहा था, डिप्टी साहब बीमार हैं?'' तिवारी ने उसकी घबराहट का अनुमान लगाते हुए प्रश्न किया।

''जी, इसीलिए मैंने डाक्टर...''

''डाक्टर को फोन किया और बात अधूरी रह गई!'' तिवारी ने बात काटकर पूरी कर दी।

''यस इंस्पेक्टर! संभव है फोन करते-करते उनकी हालत ज़्यादा बिगड़ गई हो।'' डाक्टर ने टोक दिया।

''हां डाक्टर! पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ और जब मैं आपको फोन करने के लिए बढ़ी तो इनकी फटी-फटी नजरें देखकर घबरा गई और टेलीफोन मेरे हाथ से छूट गया।''

तिवारी पर अंजना की इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। वह चुपचाप अंजना को निहारता रहा। उसकी तीव्र दृष्टि ने अंजना के दिल में जमा भय और बढ़ा दिया। उसकी समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि क्या करे।

डाक्टर टंडन ने तनिक ठहरकर डिप्टी साहब की खुली पलकों को अपने हाथों से बंद कर दिया।

''डाक्टर!''

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