ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
यह कहकर वह जाने के लिए उठा और अंजना की जान में जान आ गई। इन बातों में क्षण-भर के लिए वह भूल गई कि उससे कुछ ही दूर डिप्टी साहब की लाश पड़ी थी।
तिवारी अभिवादन करके बाहर जाने के लिए बढ़ा, लेकिन फिर फौरन ही रुक गया। उसने सदर दरवाजे से शहर के प्रसिद्ध डाक्टर टंडन को आते देख लिया था।
उन्होंने आते ही अंजना से पूछा-''क्यों, क्या हुआ बाबूजी को?''
''वह...वह...यूं ही उनकी तबीयत अचानक बिगड़ गई।''
''तुमने टेलीफोन पर बात अधूरी छोड़ दी। मैं तो डर गया था।'' डाक्टर टंडन यह कहते हुए तेजी से रोगी के कमरे की ओर बढ़ गए।
अंजना बड़ी असमंजस में फंस गई। वह उन्हें रोक नहीं सकी। उसने उचटती निगाहों से इंस्पेक्टर की ओर देखा जिसके बाहर की ओर बढ़ते कदम डाक्टर की बात पर फिर रुक गए थे। अंजना भी रुख बदलकर इंस्पेक्टर की तीखी नजरों से बचते हुए डाक्टर के साथ-साथ अन्दर की ओर बढ़ गई।
डाक्टर टंडन ने लाला जगन्नाथ का निरीक्षण करने से पहले अंजना से खिड़कियों के पर्दे खींचने के लिए कहा। लालाजी ज्यों के त्यों चित्त पड़े हुए थे। उनके चेहरे की रंगत और फटी हुई आंखों को देखते ही डाक्टर का माथा ठनका।
हाथ में नब्ज़ लेते ही डाक्टर साहब बोल उठे-''बहू! ये तो चल बसे।''
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