ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''मैं हूं, दो-तीन नौकर हैं।''
''तो फिर आपको मेरे साथ थोड़ी देर के लिए पुलिस स्टेशन चलना होगा।''
''क्यों?'' वह चौंक पड़ी।
''एक औरत को पहचानने के लिए।''
''कौन है वह?''
''वह अपने-आपको इस घराने की बहू बताती है, पूनम! शेखर की बेवा! और आपके बच्चे की मां!''
''यह झूठ है!'' वह बरबस चिल्ला उठी।
''मैं कब कहता हूं, यह सच है। लेकिन कानून कानून है। कभी-कभी झूठे आदमियों की बात भी पुलिस वालों को सुननी पड़ती है।''
''लेकिन आप तो जानते हैं बाबूजी बीमार हैं।''
''इसीलिए तो ऐसा कह रहा हूं। दो-चार सवालों का जवाब देते ही चली आइएगा। मैं कभी नहीं चाहूंगा कि डिप्टी साहब को ऐसी दशा में दुख पहुंचाया जाए।''
''ऐसा संभव नहीं इंस्पेक्टर साहब! क्या यह सवाल-जवाब दो-एक दिन बाद नहीं हो सकते?'' अंजना ने बड़े नम्र भाव से निवेदन किया।
इंस्पेक्टर का दिल पिघल गया। उसने अंजना की बात मान ली कि वह इस केस की छानबीन दो-चार दिन बाद ही शुरू करेगा। संभव है तब तक डिप्टी साहब भी स्वस्थ हो जाएं।
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