ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
वह चुप हो गई। आने वाला उसकी घबराहट का अनुमान लगाता रहा। कुछ देर बाद बोला-''आप उनकी बहू हैं ना?''
''जी।''
''मेरा नाम तिवारी है। उनका पुराना सेवक हूं।''
''लेकिन पहले तो मैंने आपको कभी नहीं देखा!''
''हां, आप तब आईं जब मैं लखनऊ में था, रेलवे पुलिस में। अब फिर नैनीताल आ गया हूं।''
पुलिस का नाम सुनते ही उसके पांव तले की जमीन सरक गई। एक अजनबी और वह भी पुलिस वाला! ऐसे अवसर पर तो उसकी जिंदगी खतरनाक से खतरनाक मोड़ ले सकती है! यह सोचते ही वह सिर से पांव तक कांप गई।
''तो क्या आप पुलिस की नौकरी करते हैं?'' उसने अपने हृदय की उथल-पुथल को शांत करने के लिए उस बात की पुष्टि करनी चाही।
''जी हां, पहले रेलवे पुलिस में था और अब सी० आई० डी० में हूं। शेखर तो बस पांच-छ: बरस ही छोटा था मुझसे।''
अंजना के चेहरे पर एक रंग आ रहा था और दूसरा जा रहा था। वह उसकी निगाहों का अधिक देर तक सामना न कर सकी और हाल में इधर-उधर घूमकर बेतरतीब चीजों को ठीक से रखने लगी। उसमें वहां से निकलने का साहस नहीं था। वह डर रही थी कि कहीं दोस्ती का दम भरते हुए यह सी० आई० डी० इंस्पेक्टर बाबूजी के कमरे में न चला जाए।
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