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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
21
अंजना जब मंदिर से लौटी तो सबसे पहले रमिया से उसका सामना हुआ जो राजीव को लिए उपवन की मखमली घास पर बैठी उसे गेंद खिला रही थी। राजीव ने मां को देखा तो गेंद लिए उसकी ओर भागा।
अंजना ने झुककर उसके गालों को चूम लिया और रमिया से बोली-''बड़े साहब जाग गए?''
''अभी नहीं बहू रानी!''
अंजना ने मंदिर का प्रसाद बच्चे के मुंह को लगाया और फिर रमिया को देकर अंदर की ओर बढ़ गई। राजीव और रमिया फिर गेंद खेलने में व्यस्त हो गए। अंजना जल्दी-जल्दी कदम उठाती हुई अंदर आई। आज उसे मंदिर में देर हो गई थी। कहीं बाबूजी उसपर बिगड़ न बैठें! अभी तक उन्हें सुबह की चाय तक नहीं दी गई। वह इन सब बातों को सोचती हुई रसोईघर की ओर बढ़ चली।
सुबह की चाय लिए जब वह बाबूजी के कमरे में आई तो वे अभी तक सो रहे थे। कमरे में पर्दों से छन-छनकर आती हुई सूरज की किरणों ने विद्युत् प्रकाश को धूमिल कर दिया था जो रात से अभी तक जलता आ रहा था।
अंजना ने चाय की ट्रे मेज पर रख दी और धीरे से बोली-''बाबूजी! चाय!''
वे मौन रहे। अंजना ने सोचा, शायद रात देर से सोने के कारण अभी तक नींद नहीं खुली। उसने तनिक और ऊंचे स्वर में अपनी बात दुहरा दी और खिड़की तक चली गई। ज्योंही उसने खिड़कियों के पर्दे खींचे, बाबूजी की चुप्पी उसे खलने लगी। उसका दिल धड़कने लगा।
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