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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
वह जल्दी से पलटकर तिपाई के पास आ गई और उनके लिए प्याले में चाय उंडेलने लगी।
सहसा उसके हाथ कांपकर रह गए। चायदानी हाथ से गिरते-गिरते बची। वह ध्यान से उनके चेहरे की ओर देखने लगी जो कांतिहीन और सफेद पड़ गया था। वे इतनी गहरी नींद सो रहे थे जैसे उन्हें यह नींद एक मुद्दत के बाद नसीब हुई हो।
अंजना के दिल में खलबली-सी मच गई। वह चाय छोड़कर उनके पास पहुंची। पहले धीरे से और फिर ऊंची आवाज से पुकारा, लेकिन लालाजी पर पुकारने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अंजना से अब अधिक सहन नहीं हो सका। उसके हृदय की भयभीत धड़कन ने उसकी सांसों को अपने शिकंजे में कस लिया। उसने डरते-डरते अपना हाथ उनके कंधे पर रखा और धीरे से उन्हें झंझोड़ा।
इस तरह हिलाते ही उनकी गरदन तकिये का सहारा छोड़कर एक ओर ढुलक गई और 'बाबूजी' कहकर अंजना के मुंह से एक घुटी-सी चीख निकल गई।
सहसा वह चुप भी हो गई और उसने अपनी सांसों को रोक लिया। ध्यान से उनके पीले चेहरे की ओर देखा जिसे देखकर अब उसे भय होने लगा। उसने तेजी से हाथ खींच लिया और घबराकर कमरे में चारों ओर देखने लगी। बाबूजी उसे यों मंझधार में छोड़कर चले जाएंगे, उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
वह तेजी से उन खिड़कियों की ओर बढ़ी जिनमें से प्रकाश की किरणें कमरे में भर रही थीं। उसने जल्दी-जल्दी वे पर्दे दुबारा खींच दिए और कमरे में अंधेरा कर दिया। विद्युत्-प्रकाश का धुंधला प्रकाश फिर उभर आया। उसने उस धुंधली रोशनी में बाबूजी की लाश को दुबारा देखा और शोक से भर उठी। लैंप बुझाना चाहा लेकिन साहस न हुआ। वह बड़ी असमंजस में फंसी बहकी-बहकी निगाहों से घूरने लगी।
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