ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''कौन? अंजू?''
''हूं, चाहूं तो उसकी सारी जागीर अपने कब्ज़े में कर लूं।''
''वह कैसे?''
''धीरे बोलो, दीवारों के भी कान होते हैं। सब कुछ समझा दूंगा।''
''फिर भी...''
उसकी बात वहीं रुक गई। बनवारी ने अपनी हथेली रखकर उसका मुंह बंद कर दिया और उसे चुप रहने का इशारा किया। वह चुप हो गई और टुकुर-टुकुर उसकी ओर देखने लगी।
''शबनम!''
''हूं।''
''भूख लगी है।''
''लेकिन इस वक्त खाने को क्या मिलेगा?''
''कोशिश करो, होटल वाले तो तुम्हारे इशारों पर नाचते हैं।''
वह शबनम के सुलगते हुए होंठों पर प्यार से उंगली फेरने लगा। वह मुस्करा पड़ी और बनवारी पर कटाक्ष किया।
अचानक न जाने उसे क्या सूझा कि उसने दांतों से बनवारी की उंगली काट ली। वह दर्द से कराहकर रह गया। वह उसकी इस दशा पर खिलखिला पड़ी।
वह भेड़िया, जो कुछ देर पहले गुर्रा रहा था, अब पालतू कुत्ते की तरह दुम हिलाने लगा। शबनम को अपनी जीत पर गुदगुदाहट-सी हुई और वह उसके लिए खाने का प्रबन्ध करने बाहर चली गई।
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