ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''इसमें क्या शक है!'' वह झुंझलाकर बोला और अपने कपड़े उतारने के लिए कमीज का बटन खोला।
''लेकिन इस बोतल को यूं आसानी से न फेंक सकोगे बनवारी!''
''वह क्यों?''
''अब उसपर तुम्हारे नाम का लेबल लग चुका है।''
शबनम की बात को भली भांति समझते हुए भी उसने कोई उत्तर नहीं दिया और यहां से हटकर बाथरूम की ओर जाने लगा। शबनम ने रास्ता रोक लिया और अपनी बांहों को दुबारा उसके गले में डाल दिया।
अब वह उसे अलग करने से घबराने लगा। उसे ऐसा लगा जैसे किसीने उसे लोहे की मजबूत जंजीरों से जकड़ दिया हो और उसमें अब भाग निकलने का साहस ही न हो।
''मुझे परेशान मत करो शिब्बो!''
''मैं तो तुम्हारी परेशानियों को बांटने आई हूं। चाहो तो आजमाकर देख लो। एक ही इशारे पर मर मिटूंगी।''
''सच।''
बनवारी ने उसके बालों को उगलियों में उलझाकर उसका चेहरा ऊपर उठाया। शबनम ने आंखें झपकाकर अपनी बात का विश्वास दिलाया। इसपर वह अपनी गंभीरता को मुस्कराहट में बदलते हुए बोला-''तुम्हें मेरा साथ देना होगा। मछली जाल में फंस चुकी है।''
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