ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
वह उसकी बगल में सीढ़ियों पर बैठ गई और अपना सिर उसके कंधे पर टिका दिया। बनवारी, जैसे अब उसे उन अदाओं से ज़्यादा लगाव न रहा हो, उसे अलग करते हुए बोला-''जाओ, दो-चार गोलियां खा लो।''
''न जाने वह शीशी कहां रख दी है, बहुत ढूंढ़ा, मिलती ही नहीं।''
शबनम के मुंह से नींद की गोलियों की बात सुनकर बनवारी के दिल की धड़कन एक पल के लिए रुक-सी गई। शबनम ने अपनी बांहें उसकी गरदन में लपेट दीं और बड़ी नाजो-अदा से उसपर झुकती हुई बोली-''आओ चलो। कब तक यहां बैठे तपस्या करते रहोगे?''
बनवारी ने एक ही झटके से उसे अलग कर दिया और बड़ी गहरी नजरों से उसे देखा। बिना कोई उत्तर दिए अपना कोट कंधे पर डालकर वह उठ खड़ा हुआ। शबनम ने उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन वह उसकी परवाह किए बिना अपने कमरे की ओर बढ़ता चला गया। उसकी ऐसी निष्ठुरता देखकर शबनम के तन-बदन में आग लग गई।
बनवारी अपने कमरे में पहुंचा। उसे यह होटल पसंद था क्योंकि यह आबादी से दूर था और अक्सर वीरान रहता था। अंदर पहुंचने पर उसकी नजर कमरे में इधर-उधर बिखरी चीज़ों पर पड़ी। उन बेतरतीब चीज़ों को देखकर वह शबनम के हृदय की विह्वलता का अनुमान भली भांति लगा सकता था।
उसने अपनी व्याकुलता कम करने के लिए अल्मारी से शराब की बोतल निकाली। उस बोतल में दो-चार घूंट थे। उसने कार्क खोला और बोतल को मुंह लगाकर वह शराब हलक में उतार ली। खाली बोतल ज्योंही उसने एक ओर फेंकी, शबनम अन्दर आ गई और उसका रंगढंग देखकर बोली-''औरत की जिन्दगी भी बस इसी बोतल की तरह है। भरी थी तो तुम्हारे होंठों के करीब थी, खाली हुई तो एक ओर फेंक दी।''
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