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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


पानी पीते-पीते सहसा वह रुक गई और खिड़की के पर्दे को हटाकर अपनी तसल्ली करनी चाही कि जो कुछ उसने देखा, सही था या धोखा था।

होटल के बाहरी भाग में बनवारी सीढ़ियों पर अकेला बैठा हुआ था। वह कुछ क्षण खड़ी उसे देखती रही और फिर हाउस कोट से बदन ढांपकर बाहर निकल आई।

बनवारी किसी सोच में डूबा, अकेला बैठा रात की कालिमा को घूर रहा था। शबनम चुपके से उसके पास आई और उसके कंधे पर अपना हाथ रख दिया। वह एकदम कांपकर रह गया।

चौंकते हुए उसने पलटकर देखा तो शबनम बोली- ''यहां क्या हो रहा है?''

''कुछ नहीं।'' उसने बेरुखी से उत्तर दिया।

''वाह! तुम्हारे लिए तो कुछ नहीं और वहां मैं घंटों से तड़प रही हूं!''

''तड़प तो मैं रहा हूं। तुम्हें क्या गम है? जाओ, सो जाओ।'' बनवारी ने बड़ी निष्ठुरता से कहा और सीढ़ियों पर जमी गर्द को अंगुलियों से चीरकर मन की व्यथा को छिपाने का प्रयत्न करने लगा।

''लेकिन मुझे नींद नहीं आई। तुम तो जानते हो, तुम्हारी शबनम तुम्हारे बिना एक पल भी चैन से नहीं सो सकती। उसे नींद की गोलियां खानी पड़ती हैं।''

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