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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


अंजना ने रुककर उसे पुकारा और जब वह बाहर आई तो उससे पूछा-''रमिया! मेरा खाना तैयार है?''

''जी, बहू रानी!''

''ऊपर ही ले आना।'' यह कहते हुए वह अपने कमरे में चली गई।

रमिया ने भिनभिनाकर नाक सिकोड़ी और जाकर अंजना का खाना परोसने लगी।

आधी रात बीत गई। अंजना बिस्तर पर लेटी सोने के प्रयास में व्याकुल हो रही थी, लेकिन नींद जैसे उसकी आंखों से रूठ गई थी। राजीव उसके सीने से लगा सो रहा था। वह गले में लटकी हुई सोने की माला को पकड़े हुए था जिससे वह खेलते-खेलते सो गया था।

अंजना आने वाले जीवन की कल्पना में डूबी न जाने क्या-क्या बेतुकी बातें सोचे जा रही थी। अब उसे उन अंधेरों से भय नहीं लग रहा था। उसे विश्वास था कि कुछ ही दिनों में वे अंधेरे छंट जाएंगे और वह उजालों में बिखरकर कुंदन बन जाने वाली थी।

अब उन अंधेरों से किसी को डर लग रहा था तो शबनम को जो होटल के कमरे में अकेली पड़ी तड़प रही थी। शरीर का ताप तो कम हो गया था लेकिन अंतःकरण में छिपा ताप उसे व्याकुल किए हुए था, क्योंकि बनवारी अभी तक वापस नहीं आया था। दो दिन पहले उन्होंने वह होटल छोड़कर आबादी से जरा दूर एक नये होटल में जगह ले ली थी।

शबनम को बनवारी की यह बात पसंद तो नहीं आई थी लेकिन विवश होकर उसे उस होटल में आना पड़ा था। वह व्याकुल होकर बिस्तर से उठ खड़ी हुई और बत्ती जलाकर नींद की गोलियों वाली शीशी तलाश करने लगी। इसी उलझन और तिलमिलाहट में उसने कमरे की कई चीज़ें उलट-पलट दीं लेकिन वह शीशी नहीं मिली। वह झुंझला उठी और खिड़की के पास रखी हुई सुराही की ओर बढ़ी। सुराही उठाकर मुंह से लगा ली और अपने सीने की भड़कती आग को कुछ कम करने के लिए गटागट पानी पीने लगी।

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