ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
यह कहते-कहते उनका सांस उखड़ गया। सीने का बोझ उतर गया, लेकिन अपनी जगह एक तिलमिलाहट-सी छोड़ गया।
वह हाथ की सलाई छोड़कर उनकी ओर झुकी और धीरे-धीरे उनकी पीठ सहलाने लगी। उसने अपनी जिम्मेदारियां निभाने और राजीव की जिन्दगी का सहारा बनने की कसम खाई। उसने अपनी डबडबाई आंखों से बाबूजी को विश्वास दिलाया कि वह कभी भी यह नहीं भूलेगी कि वह इस घराने की बहू और राजीव की मां है।
लालाजी ने कुछ और भी कहना चाहा लेकिन अंजना ने अधिक बोलने से मना कर दिया और दूध का गिलास उठाकर उनके आगे कर दिया। इस बार लालाजी इंकार न कर सके और हल्के-हल्के घूंटों से पूरा गिलास पी गए।
अंजना ने खिड़कियों के पर्दे गिरा दिए। छत की रोशनी बन्द कर दी और धुंधली रोशनी का छोटा बल्ब जला दिया ताकि कमरे में
बिलकुल अंधेरा न हो जाए। उसने बाबूजी के तकिये सीधे कर दिए और एक बार फिर उनकी पीठ धीरे-धीरे सहलाने लगी।
कुछ देर में ही उनकी आंख लग गई। अंजना वसीयतनामा और स्वेटर लिए कमरे से बाहर आ गई। उसने सावधानी से किवाड़ बंद कर दिए ताकि ठंडी हवा कमरे की गरमी को कम न कर दे। फिर जब वह सीढ़ियां चढ़कर अपने कमरे में जा रही थी तो उसके हृदय में कुछ विचित्र-सी शांति थी। रमिया अभी तक रसोई-घर में काम कर रही थी।
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