ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
पूनम एकदम चुप हो गई। उसने आंखें खोलीं और अपने चेहरे पर बंधी पट्टियों में से झांककर देखा। उसकी आंखें चमक उठीं। दो-एक क्षण वह शांत भाव से देखती रही और फिर मद्धिम स्वर में बोल उठी- ''कौन?''
''अंजू तुम्हारी सहेली। पूनम!''
वह फिर चुप हो गई।
अंजना ने अपनी बात दुहराई- ''मैं हूं पूनम! तुम्हारी सहेली। राजीव सो रहा है।''
पूनम ने बड़ी कठिनाई से अपना कमजोर हाथ उठाया। ऐसा लगा जैसे अंजना की आवाज ने उसकी मुर्दा रगों में पल-भर के लिए रूह फूंक दी हो। अंजना ने लपककर उसके हाथ को पकड़ लिया और धीरे-धीरे उसे दबाने लगी। इस प्यार भरे संपर्क से उसमें कुछ स्फूर्ति आई। उसका सारा शरीर कांपने लगा।
सहसा उसके मंह से निकला- ''मैं अब ज़िंदा... नहीं हूं अंजू!''
''छि: छि:! ऐसी बात क्यों करती हो! तुम बहुत जल्दी अच्छी हो जाओगी।''
''किसके लिए? जिन्दगी तो पहले ही बोझ बन गई थी मेरे लिए जब मैं चंगी-भली थी, और अब-अब तो यह काया भी एक बोझ बन गई है। इस बोझ को कौन उठाएगा?''
''मैं-मैं जो तुम्हारे साथ हूं! तुम्हारी छोटी बहन!''
अंजना ने झुककर उसकी आंखों में झांकने का प्रयास किया। पूनम की आंखों में आंसू छलक आए थे। उसे लग रहा था जैसे मझधार में डूबते-डूबते किसी तिनके का सहारा मिल गया हो।
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