ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
पूनम बड़े प्यार से बोली- ''मेरे नसीब जाग उठे अंजना! तू मिल गई मुझे। अब मेरी सारी कठिनाइयां हल हो गईं।''
अंजना की समझ में उसकी बात तो न आई फिर भी उसने स्वीकारसूचक ढंग से सिर हिला दिया।
''तुम्हें एक सहारे की तलाश है ना?'' पूनम पुन: बोली।
उसकी यह बात सुनकर अंजना चौंक उठी। उसने चकित हो उन अधरों की ओर देखा जिनकी पीलिमा पर कुछ लाली आ गई थी। जैसे निराशा अचानक आशा में बदल गई हो। वह पूनम की उखड़ी-उखड़ी बातों को समझने के लिए तनिक और सरक आई।
''जानती हो ना, इस दुनिया में जीना कितना कठिन है?'' पूनम ने कहा।
''हूं!''
''खास तौर से उस लड़की के लिए जिसका कोई रक्षक नहीं हो।''
''मुझे किसी रक्षक की जरूरत नहीं रही पूनम! मुझे तो मर्दों से घृणा हो चुकी है। तुम्हारा साथ मिल गया है, इसी सहारे जीवन बीत जाएगा। मैं भी इस बच्चे की मुस्कराहट से मुस्करा लूंगी।''
''और मैं मर गई तो?''
''छि:! भगवान के लिए ऐसा मत सोचो।''
पूनम ने अंजना की यह बात सुनी तो उसके अधरों पर मुस्कान थिरक उठी। अंजना को लगा जैसे सफेद कफन से ढके हुए मुर्दे के नीले अधर सहसा खिल उठे हों।
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