ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना चुपचाप पूनम के पास बैठ गई। ज्यों-ज्यों शीशे की बोतल से ग्लूकोज टपक-टपककर उसकी रगों में समा रहा था, अंजना को उसकी जिन्दगी की आशा बंधती जा रही थी; लेकिन उसकी बिगड़ी हुई सूरत देखकर उसका दिल दहल गया था, उसकी सारी अभिलाषाएं मिट गई थीं। उसे नारी-जाति पर तरस आ रहा था। वह सोच रही थी कि औरत ठीक उस किश्ती की तरह है जो तूफान के थपेड़ों से हिचकोले खाती रहती है। अगर दुर्भाग्य से उसका मल्लाह पतवार छोड़कर उसे भंवर में अकेला छोड़ दे तो वह कहीं की नहीं रहती।
अकस्मात् पूनम को कुछ होश आ गया। उसके पीले-पीले सूखे होंठ फड़फड़ाए। वह अपने बच्चे को याद कर रही थी। अर्धमूर्छित अवस्था में कुछ ऐसी बातें बुदबुदा रही थी जो समझ में नहीं आती थीं।
अब वह डॉक्टर को पुकारने लगी। अंजना ने झुककर उसकी बात समझने की कोशिश की।
पूनम कह रही थी-''डॉक्टर! बच्चे के दूध का समय हो गया है... मुझे उठने दो...इतना बोझ मेरे सिर पर न रखो डॉक्टर!... मैं उसके तले दबी जा रही हूं।''
उसकी आवाज में कंपन थी। सांस रुक-रुककर चल रही थी। जबान लड़खड़ा रही थी। जब उसे कोई जवाब नहीं मिला तो वह चिल्ला उठी। उसकी चीख में एक दर्द था जो वायुमंडल में बिजली की लहर की तरह दौड़ गया।
नर्स ने लपककर झटपट खून की नली उतार दी।
''नन्हा सो रहा है पूनम!'' अंजना के मुंह से स्वत: निकल गया।
|