ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
उसे ऐसा करते देख बनवारी ने कहा-''जवाब नहीं तुम्हारा। पहले गरम करती हो और फिर ठंडा।''
''यही दुनिया का दस्तूर है।'' यह कहते हुए वह मुड़ी और बगल वाले स्टोररूम में चीनी लाने चली गई।
बनवारी तो इसी ताक में खड़ा था। वह तुरंत किवाड़ के पीछे से निकला और जेब में से दवा की एक शीशी निकाली जिसमें दस-बारह गोलिया थीं। उसने फौरन वे गोलियां दूध के गिलास में डाल दीं और खाली शीशी को खिड़की से बाहर फेंक दिया।
रमिया चीनी लेकर लौट आई। एक चम्मच चीनी दूध में मिलाई और गिलास को तश्तरी में रखते हुए बोली-''मैं चली!''
''तो मैं जाऊं?''
''और करोगे भी क्या? आज वह तुम्हारे साथ बात भी नहीं करेगी।''
''वह क्यों?''
''कहा ना, बाबूजी बीमार हैं।''
''कोई बात नहीं, कल मिल लूंगा।'' यह कहते हुए बनवारी खिड़की से कूद गया।
उसका आना और फिर इस तरह चले जाना रमिया की समझ में नहीं आया। उसने एक बार मोहभरी दृष्टि चुनरी पर डाली और दूध का गिलास लिए बाबूजी के कमरे की ओर चल पड़ी।
लालाजी को दिल का दौरा पड़े आज दो रोज हो गए थे। सीने का दर्द तो संभल गया था लेकिन डाक्टर ने उन्हें उठने-बैठने चलने-फिरने की मनाही कर दी थी। अंजना रात-दिन उनकी सेवा में जुटी रहती। सास की अनुपस्थिति के कारण उसकी जिम्मेदारियां बढ़ गई थीं। इस बीच कमल भी वहां नहीं आ सका था। वह अपने पिताजी के साथ बरेली गया हुआ था। किसी रिश्तेदार की शादी पर।
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