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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
इससे पहले कि वह यह पूछती, बनवारी उसके और निकट आ गया और जेब से एक पैकेट निकालकर रमिया की ओर बढ़ाया।
''यह क्या है?'' रमिया ने पूछा।
''धानी चुनरी तेरे लिए।'' बनवारी ने पैकेट खोलकर चुनरी निकाली और उसे अपनी बांहों पर फैलाकर उसकी नजरों के सामने कर दिया।
रमिया अपनी घबराहट और मन में समाया क्रोध भूलकर चुनरी की बारीक धारियों को देखने लगी। सितारों से जड़ी रेशमी चुनरी देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई।
वह उसकी मुलायम सलवटों पर उगलियां फेरती हुई बोली-''तुम यह सब क्यों करते हो मेरे लिए बनवारी?''
''अपना दिल रखने के लिए। तुम जो इतना करती हो मेरे लिए!''
''मैं-! मैं क्या करती हूं?'' उसने वह चुनरी अपने हाथों में थाम ली।
''इस घर में आने देती हो जिससे एक नजर तुम्हारी मालकिन को देख लेता हूं।''
''बनवारी!'' उसने चूल्हे पर दूध की पतीली रखते हुए कहा।
''हूं।''
''तुम उसे इतना प्यार करते हो, लेकिन वह तुमसे इतनी घृणा क्यों करती है?''
''तू नहीं समझेगी इस प्यार को। समाज से डरती है तेरी मालकिन!''
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