ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
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''उई दइया!'' रसोईघर में आते ही रमिया के मुंह से एक फुसफुसी-सी निकल गई। फिर उसने अपने-आपको संभाला और उस अंधेरे कोने में देखने लगी जिसमें खड़े बनवारी की आंखें जंगली भेड़िये की तरह चमक रही थीं।
बनवारी उसकी ओर बढता हुआ बोला-''क्या बात है रमिया? आज कुछ गुस्से में हो! मेम साहब ने डांट दिया है क्या?''
''मेरी जूती डांट खाती है! अब के तनखाह न बढ़ाई तो देख लूंगी!'' वह बड़बड़ाई।
''क्या करोगी?''
''दस घर और हैं, हाथ जोड़ के ले जाएंगे।'' उसने माथे पर झलक आए पसीने की नन्ही-नन्ही बूंदों को आंचल से साफ किया और चूल्हे में आग तेज करती हुई बोली-''चूल्हा जलाए तो रमिया! बच्चा खेलाए तो रमिया! झाड़पोंछ करे तो रमिया! और तनखाह बस चालीस रुपये! छि:!''
''तू क्यों दीमक लगाती है पगली, अपनी जवानी को! घर के कामकाज में!''
बनवारी की बात सुनकर वह बरबस चौंकी ओर उसकी भूखी निगाहों की ओर देखने लगी जो उसके जवान और गदराए बदन को छेदे डाल रही थीं। उसके सूखे होंठों पर उसकी जबान नागिन के फन की तरह डोल रही थी। वह तनिक घबरा गई और उसने आंचल समेटकर अपने सीने को ढक लिया। क्रोध के कारण वह उस बनवारी को वहां देखकर यह पूछना भूल ही गई कि वह वहां क्यों आया था।
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