ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''आप कहकर तो देखिए।''
''अच्छा बाबा! जा काम कर। वे नहीं माने तो मैं दे दूंगी।'' रमिया यह सुनकर खुश हो गई और नाचती हुई सी बाहर चली गई। उसने आज तक मालकिन का ऐसा मूड नहीं देखा था। वह उछलती-कूदती बागीचे में चली गई और राजीव के खिलौने बटोरने लगी जो शाम को खेलते समय वह वहीं छोड़ आया था।
सहसा अंधेरे में अंगारे की चमक देखकर वह कांप उठी। थोड़ी ही दूर पर बागीचे की हद के बाहर कोई बैठा सिगरेट पी रहा था। वह आंखें फाड़-फाड़कर उसकी ओर देखने लगी जो अब होंठों की सीटी बजाकर उसे अपने पास बुला रहा था। उसके हाथों से वे खिलौने छूट गए और वह उसे पहचानने का यत्न करने लगी। जैसे ही अंधेरे में उस आदमी के दांत चमके, वह उसे पहचान गई। वह बनवारी था जो न जाने कब से लोहे की बाड़ का सहारा लिए उसकी प्रतीक्षा कर रहा था।
रमिया ने चारों ओर नजर डाली। जब कोई दिखाई न दिया तो वह उसकी ओर बढ़ी।
उसने सिगरेट के अधजले टुकड़े को वहीं पत्थर पर मसल डाला और बोला-''जानती हो, कब से तुम्हारे इन्तजार में खड़ा हूं?''
''कब से?''
''पूरा एक घंटा हो गया।''
''तुम्हें कैसे पता था कि मैं यहां आऊंगी?''
''यूं ही, अंदाज से।''
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