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कटी पतंग
कटी पतंग
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9582
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आईएसबीएन :9781613015551 |
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
अंजना ने स्वीकारात्मक ढंग से सिर हिला दिया और अपने आंसू पोंछती हुई कमरे से बाहर चली गई। उसकी कुंआरी और गूंगी आंखों में फिर से वह चमक आ गई। उसकी अंधेरी राहों में असंख्य दीये जगमगा उठे। वह एक तरह से भागती हुई सीढ़ियां पार करके अपने कमरे में जा पहुंची।
सामने कालीन पर राजीव खेल रहा था। अंजना ने लपककर उसे अपने अंक में भर लिया और उसे पागलों को तरह चूमने लगी। अकस्मात् उसके पेट में वह गुदगुदी करने लगी और राजीव जोर-जोर से हंसने लगा। आज से पहले उसने मां की यह मुद्रा कभी नहीं देखी थी।
अचानक रमिया को देखकर वह सकपका गई। उसने अपने ढलके आंचल को संवारा और रमिया की ओर देखने लगी जो राजीव का दूध बनाकर लिए आ रही थी।
रमिया के हाथ से दूध की बोतल लेकर उसने कहा-''जा, तू और काम कर, मैं पिला देती हूं।''
''बहू रानी!'' अंजना की ओर एकटक देखते हुए रमिया बोली।
''क्या है?''
''बाबूजी से आपने कहा?''
''क्या?''
''पेशगी तनख्वाह के लिए! आज फिर मां का खत आया है।''
''ओह! रमिया, तेरा भी जवाब नहीं। एक बार कहा न, वे नहीं मानेंगे।''
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