ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
|
7 पाठकों को प्रिय 38 पाठक हैं |
एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
लालाजी ने ध्यान से कमल की ओर देखा। कमल की आंखों में प्यार उमड़ आया था। दिल में छिपे हुए प्यार के मोती अब पलकों में आ टिके थे। भावुकता की धारा में बहकर उसने अपने दिल का भेद उनसे खोल दिया था।
''तुम्हारे डैडी इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे?''
''उन्हें मनाना तो आपका काम है।''
''और बहू को?''
वह चुप हो गया। बाबूजी के इस प्रश्न का उसके पास कोई उत्तर नहीं था।
उसे मौन देखकर उन्होंने फिर अपना प्रश्न दुहराया। कमल ने रुकते-रुकते केवल इतना ही कहा- ''मुझे तो विश्वास है कि वह इंकार नहीं करेगी।''
कुछ देर बाद जब कमल बाबूजी के कमरे से निकलकर कोठी के सदर फाटक की ओर बढ़ रहा था तो सहसा उसके कदम रुक गए। बागीचे की ओर लकड़ी के एक टाल तले अंजना अकेली बैठी कुछ सोच रही थी। कमल कुछ क्षण ठिठककर देखता रहा और फिर धीरे-धीरे उसके निकट चला आया।
वह अपनी चिंता में मग्न दूसरी ओर मुंह किए झील का पानी निहार रही थी। कमल भी चुपके से उसके निकट खड़ा हो गया और झील की ओर देखने लगा जिसके किनारे स्कूल के कुछ बच्चे पतंग उड़ा रहे थे। अंजना उन बच्चों की ओर देख रही थी जो नीले आसमान में डोर को ढील देते हुए एक-दूसरे की पतंग काटने में मस्त थे।
अचानक एक पतंग कटी और हवा में बल खाती हुई उनके बागीचे में आ गिरी। उस पतंग को देखकर वह उठी लेकिन किसी को अपने पास पाकर वह कंपित अधरों से बोल पड़ी-''आप!''
|