ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''इससे अच्छी बात और क्या होगी! कोई लड़की पसंद आई?''
''हूं?''
''कौन है?''
''कहते हुए डर लगता है।''
''मुझसे? डरता तो तू अपने डैडी से है। मैं तो तुम्हारा चचा होने के साथ-साथ दोस्त भी हूं।''
''तो कह दूं चाचाजी?''
''हां-हां, कह दो, बिना झिझक! मुझसे नहीं कहोगे तो क्या अपने बाप से कहोगे! हां, तो बताओ, कौन है वह लक्ष्मी?''
''आपकी...बहू!'' वह थरथराकर बोला।
''कमल!'' लालाजी चिल्लाकर रह गए। उन्हें लगा कि इस समय उनकी बहू कमरे के बाहर खड़ी है।
''हां चाचाजी! याद है, एक दिन आपने खुद ही अपने दिल की बात कही थी मुझसे! आपने कहा था कि आप उसका दूसरा ब्याह करना चाहते हैं।''
''लेकिन मैंने...मैंने...'' कुछ कहते-कहते वे रुक गए।
''क्या आप नहीं चाहते कि यह देवी सदा के लिए आपकी बहू बनी रहे? आपकी नजरों के सामने रहे? आपके राजीव के सिर पर छाया बनी रहे?''
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