ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
लाला जगन्नाथ उसमें आए हुए इस परिवर्तन को बड़े ध्यान से परख रहे थे। शायद यह औरत की सबसे बड़ी अग्नि-परीक्षा थी जब वह अपने हृदय और कर्तव्य के दोराहे पर खड़ी होकर 'किधर जाए और किधर न जाए' का फैसला करती है।
आज भी जब वह सुबह का नाश्ता लेकर बाबूजी के कमरे में आई तो वे सुबह की डाक देख रहे थे। बहू को देखते ही कह उठे-''लो शेखर की मां का खत, एक हफ्ते की और मुहलत मांगी है।''
''तो क्या हुआ! मन लग गया होगा। रहने दीजिए ना, घर से निकलना आसान भी तो नहीं है।''
''इसका डर नहीं मुझे, डर तो दूसरी बात का है।''
''किस बात का?''
''कहीं उसने वहीं आश्रम बनाकर संन्यास ले लिया तो मेरा क्या होगा?''
''तो आप भी संन्यास ले लीजिएगा।'' इस आवाज ने दोनों को चौंका दिया।
सामने दरवाजे में कमल खड़ा था जिसने उनकी बातें सुन ली थीं और अपनी राय से अवगत करा दिया। अजना झेंप गई और बाबूजी के लिए चाय बनाने लगी। कमल ने डिप्टी साहब के स्वागत का उत्तर देते हुए कहा- ''आंटी के बिना आप उदास हो गए हैं।''
''क्या करूं, अर्धांगिनी जो ठहरी।''
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