ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
वे कुछ देर उसकी पथराई और गूंगी नजरों को निहारते रहे और फिर बोले-''क्या सोच रही हो बहू? कल जब तुम्हें सहारा चाहिए था तो इसे अपना घर समझ लिया और आज जब इस घर को एक बहू की जरूरत है तो तुम घबरा रही हो!''
बाबूजी के शब्द उसके दिल में उतर गए। वह तड़प उठी और उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने झुककर अपना अटैचीकेस उठाया और थकीहारी-सी अन्दर की ओर जाने लगी।
लाला जगन्नाथ ने उसे रोका और चाभियों का वह गुच्छा उसकी हथेली पर रखते हुए कहा-''वादा करो कि अपनी जिम्मेदारियों को अपनाओगी और कभी उनसे मुंह नहीं मोड़ोगी।''
अंजना ने भीगी पलकों से वचन दिया। उसके थरथराते होंठ और भी न जाने क्या कहना चाहते थे, लेकिन जबान न खुल सकी। लाला जगन्नाथ उस समय तक अपनी जगह पर खड़े रहे जब तक वह अपने कमरे में नहीं पहुंच गई।
अब अंजना के जीवन में एक विशेष परिवर्तन आ गया। उसने बाबूजी के कहने के अनुसार अपनी जिंदगी ढालनी शुरू कर दी। कल तक वह अपने लिए जी रही थी और अब उसने डिप्टी साहब के घराने के लिए जीना शुरू कर दिया। वह सचमुच अंजना को भूलकर पूनम बनने की कोशिश करने लगी। वह दिन-रात बाबूजी की सेवा करती, घर की देखभाल करती और राजीव की मुस्कराहट के लिए न्योछावर हो जाती।
इस बीच दो-एक बार कमल आया भी, लेकिन उसने उसका सामना नहीं किया। कमल ने उससे मिलने का यत्न भी किया, लेकिन वह टाल गई। वह अब उससे दूर हो जाना चाहती थी।
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