ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
''जी! नहीं तो!'' वह बौखला उठी।
''तो इतनी रात गए चाभियों का यह गुच्छा मेरे कमरे में क्यों छोड़ आई थीं?''
''ताकि अब आपको मेरे लिए अधिक व्याकुल न होना पड़े।''
''मैं तो कभी व्याकुल नहीं था तुम्हारे लिए। यह तो तुम्हारे मन की हलचल है जो तुम्हें शांति से नहीं रहने देती।''
''कुछ समझ में नहीं आता कि क्या करूं!'' वह रुआंसी हो उठी।
''वही करो जो हम दोनों ने मिलकर तय कर लिया है।''
बाबूजी की बात सुनकर एक बार वह फिर चौंक गई और उनकी ओर प्रश्नसूचक दृष्टि से देखनी लगी।
''हां, तुम्हें पूनम बनकर रहना होगा इस संसार में। अंजना की समृति को भी दिल से निकाल फेंकना होगा।''
''यह कैसे संभव हो सकता है बाबूजी! जिंदगी के इतने लम्बे अर्से को कैसे भुला दूं?''
''हर असंभव बात संभव हो सकती है। कल क्या था, इसे भूल जाओ। जो कल आ रहा है, वह मेरे सपुर्द कर दो।''
अंजना ने उनकी यह विचित्र और अनोखी बात सुनी और उनके चेहरे की ओर ताकने लगी जो आज व्याकुल नहीं था। उनके अधरों पर आशा से भरी एक मुस्कान नाच रही थी। वे अंजना की इस हरकत से रुष्ट नहीं, थे जैसे वे उसकी मानसिक दशा उससे अधिक समझते हों।
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