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कटी पतंग

गुलशन नन्दा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :427
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9582
आईएसबीएन :9781613015551

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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।


वह अटैचीकेस थामे धीरे-धीरे सीढ़ियां उतर रही थी। सदर हाल की धुंधली रोशनी में उसे हर चीज साफ दिखाई दे रही थी। उसे वे मौन वस्तुएं अपनी ओर घूरती दिखाई दीं जैसे वह इस घर से कुछ चुराकर भाग रही हो।

वह सांस रोके बड़े हाल में पहुंची। तालियों के गुच्छे को और भी मजबूती से पकड़ वह चुपचाप बाबूजी के कमरे की ओर बढ़ी।

वे नींद में डूबे हुए थे। अंजना ने हिम्मत की और उनके शयनकक्ष में चली गई। वह धीरे-धीरे उनके पलंग के पास पहुंची और चाभियों का वह गुच्छा उनके तकिये के पास रख दिया। ऐसा करते समय उसे ऐसा लगा जैसे उस घर की सारी जिम्मेदारियों का बोझ उसके सिर से उतर गया हो। उसने झुककर बाबूजी के पैर छुए और तेजी से बाहर निकल गई।

अंधेरे में चलते हुए वह बाहरी फाटक तक पहुंची; लेकिन ज्योंही उसने फाटक की अंदरूनी चटखनी खोलनी चाही, वह ठिठक गई। दरवाजे पर एक बड़ा-सा ताला पड़ा हुआ था। यह देखकर वह भय से सिहर उठी। इस ताले ने उसके सारे इरादों को कुचल डाला।

अभी वह असमंजस में पड़ी वहीं खड़ी थी कि किसी आहट को सुनकर उसके कान खड़े हो गए। उसने पलटकर देखा और धक् से रह गई। किसीने बाबूजी के कमरे की बत्ती जला दी थी।

उसने इस चकाचौंध रोशनी में देखा, बाबूजी कमरे से निकलकर दालान में खड़े हैं और उनके हाथों में वह चाभियों का गुच्छा है। उन्हें देखते ही अंजना के हाथ से अटैचीकेस छूटकर नीचे गिर गया और वह सिर से पांव तक पसीने में भीग गई।

''तुम जा रही हो बहू!'' लाला जगन्नाथ ने उसके निकट आते हुए कहा।

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