ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
वह तिलमिलाई, हड़बड़ाई और इसी हड़बड़ाहट में उसे खांसी आ गई। शराब फव्वारे की तरह उसके मुंह से निकलकर बनवारी के कपड़ों पर बिखर गई। उसकी दशा देखकर बनवारी खिलखिला उठा।
इन्हीं उलझनों में गिरफ्तार अंजना अभी तक अपने पलंग पर बैठी थी। रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। आज की घटना ने उसे व्याकुल कर दिया था। वह कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि एक दिन उसकी ज़िंदगी ऐसे चौराहे पर आ खड़ी होगी कि उसे कोई रास्ता भी सुझाई नहीं देगा।
एक ओर बहू का कर्तव्य था और दूसरी ओर कमल का प्यार दिल के किसी कोने में पनप चुका था। एक ओर बनवारी का भय था और दूसरी ओर उस जीवन का भय जो प्रत्येक क्षण एक अंधी और गहरी खाई में गिरता जा रहा था। उस घर की जिम्मेदारियां अपने सिर पर लेकर वह जीवन-भर न उभर सकेगी। आज तो बाबू-जी ने उसकी इज्जत रख ली, लेकिन कल जब वे न होंगे तो दुनिया वाले उससे कैसा सलूक करेंगे? इसका ख्याल आते ही वह कांप उठी।
एक फैसला जो बार-बार उसके मन-मस्तिष्क में गूंज रहा था, वह था इस घर को सदा के लिए तिलांजिल दे देना। उस जाल से बाहर निकल जाना जो उसे बुरी तरह जकड़े जा रहा था। अन्त में वह कुछ सोचकर उठी और एक छोटे-से अटैचीकेस में अपने पहनने के दो-चार कपड़े रखे। जेवरात और चाभियों का गुच्छा लेकर पलंग के पास आई जिस पर राजीव पड़ा सो रहा था।
राजीव को देखते ही उसके दिल में ममता उमड़ी। वह उसपर झुक गई और उसका ललाट चूम लिया। आंखों में आंसू उमड़ आए लेकिन धीरज से काम लिया। कांपते हाथों से राजीव के बाल सहलाए और फिर कंबल से ढांपकर अलग हो गई।
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