ई-पुस्तकें >> कटी पतंग कटी पतंगगुलशन नन्दा
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एक ऐसी लड़की की जिसे पहले तो उसके प्यार ने धोखा दिया और फिर नियति ने।
बनवारी ने बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया और खींचकर अपनी गोद में गिरा लिया। वह एक मछली की तरह तड़पी लेकिन बनवारी की बांहों की जकड़ से निकल न सकी।
''क्यों, नाराज हो गईं क्या?'' बनवारी ने बड़े प्यार से पूछा।
''तुमसे नाराज होकर जान आफत में डालनी है!''
बनवारी ने उसके गाल में दांत धंसा दिए। वह चिल्ला उठी और कसकर बनवारी के मुंह पर तमाचा जड़ दिया।
बनवारी चांटा खाकर हंस पड़ा, बोला-''अरे, तेरी इन्हीं अदाओं ने तो मुझे अपना कैदी बना रखा है!''
''तो दुम हिलाते उस अंजू के पास गालियां खाने क्यों चले जाते हो? मुझे यहां दुबारा क्यों बुलाया है?''
''इन्हीं गालियों में तो मजा आता है शिब्बू! एक ऐसा मजा जिसका अनुमान तुम नहीं लगा सकतीं जानेमन!''
''जिस दौलत के सपने तुम देख रहे हो बनवारी, वह तुम्हारे हाथ लगने की नहीं।''
''क्यों?''
''इसलिए कि वह अंजना के हाथ में है।''
''मैं भी तो इसी चिंता में हूं कि कुछ बांट लूं।''
''प्यार से चाहो तो औरत सब कुछ मर्द के हवाले कर सकती है, लेकिन वह तुमसे नफरत करती है। तुम्हें एक फूटी कौड़ी भी नहीं देगी।''
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